Sonia Jadhav

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भारत का किसान

क्या हुआ, ऐसे उदास काहे बैठे हो? ऐ रमुली के बापू............. कुछ कहोगे या नहीं? शक्कर घोल लिए हो का मुंह में?

अब क्या बताऊँ तुझे? अक्टूबर का महीना आ गया है, गेहूं बोने का समय नज़दीक है। ना बीज के लिए पैसा है, ना खाद के लिए। हमारे बैलों की हालत तो जानती ही है तू। मरे पड़े हैं, कितने कमज़ोर हो गए हैं। फसल ना बोयी तो क्या खाएंगे, क्या बेचेंगे? कैसे जिन्दा रहेंगे? जेब में एक धेला नहीं है। क्या करूँ? कुछ समझ नहीं आ रहा।
रमुली के बापू, तुम जाकर जमींदार जी से क्यों बात नहीं करते? बड़े भले आदमी हैं। कल मैं आटा और दाल लेने गई थी लाला के पास, देने में आनाकानी करने लगा। पुराना हिसाब गिनाने लगा मुझे। तभी जमींदार जी आ गए, उन्होंने उसे बहुत डांटा और कहा, हिसाब मैं कर दूंगा इसका। इसे जो चाहिए, दे दे उसे। बड़े प्यार से रमुली के सर पर हाथ फेरने लगे। कहा, जब भी जरूरत हो तो मेरे घर आ जाइयो अपनी बेटी को लेकर।

अरी बेवक़ूफ़ औरत, वो मक्कार है एक नंबर का। उसकी नियत ख़राब है। खबरदार जो कभी रमुली को लेकर उसके घर गयी तो।

मैं गुस्से से उठकर बाहर निकल गया। रास्ते में वही जमींदार मिल गया। अरे रामू, आटा-दाल पहुँच गया ना घर? हाँ मालिक, कृपा है आपकी। धन्यवाद हम जैसे गरीबों का पेट भरने के लिए। तेरी बेटी तो बड़ी प्यारी है, कितनी जल्दी बड़ी हो गयी है......। कोई मदद चाहिए हो तो घर आ जाइयो.... कहकर चला गया हँसते हुए।

मन तो कर रहा था, वहीँ उसकी इज़्ज़त उतार दूँ। पर नहीं कर सकता था। इतना साहस नहीं था कि उसके मुंह पर थूक सकूँ, आखिर जमींदार था वो और मैं एक गरीब किसान। औकात ही क्या थी मेरी उसके सामने।
अपनी ही धुन में चला जा रहा था, घर पर रमुली की माँ ने आधा दिमाग खराब कर दिया था जमींदार की बात सुनाकर और बाहर फिर वही जमींदार आँखों के सामने आ गया। कपाल गरम हो गया था मेरा। चलते-चलते सामने आती स्कूटर भी नहीं दिखी और टकराकर गिर पड़ा। गाली देने ही वाला था, देखा तो सामने रमुली के मास्टर जी थे स्कूटर पर। 

क्या हुआ धर्मपाल? मरने का मन है क्या जो इतनी बड़ा स्कूटर भी नहीं दिखा?

माफ़ करना मास्टर जी, थोड़ा परेशान हूँ।
मास्टर जी ने सड़क के किनारे गाड़ी लगाई और कहने लगे........ चल इधर पेड़ की छाँव में बैठकर बात करते हैं। हम दोनो पेड़ के नीचे बैठ गए। हाँ, अब बता क्या परेशानी है? 

क्या बताऊँ मास्टर जी फसल बोने का समय नज़दीक आ गया है और जेब में एक रुपया नहीं है। कोई मुझे कर्ज़ देने को तैयार नहीं है और एक वो जमींदार है, उसकी नीयत ख़राब है। मैं उससे मदद मांगकर फंसना नहीं चाहता। ऐसा ही रहा तो कई खुदकुशी ना करनी पड़ जाय। यही डर सता रहा है।

पागलों वाली बातें ना कर। सुन मेरी बात ध्यान से, सरकार ने किसानों के लिए कई योजनाएं बनायी हैं। उसका लाभ उठा।
धर्मपाल के चेहरे पर से तनाव थोड़ा कम हुआ। कैसे मास्टर जी?
मास्टर जी कहने लगे...... सालाना 6000 रुपये देने का फैसला किया है किसानों को और 60,000 से एक लाख तक का कर्ज भी सरकार देने को तैयार है वो भी कम ब्याज़ दर पर। एक किसान क्रेडिट कार्ड योजना का लाभ भी तू उठा सकता है, जिसमें तुझे बिना कोई गारंटी दिए 3 लाख तक का कर्ज़ मिल सकता है।

मास्टर जी सुनने में तो यह सब बातें बहुत भली लग रही हैं, लेकिन मैं इन योजनाओं का लाभ उठाऊंगा कैसे? मैं ठहरा अनपढ़, गरीब किसान। मैं यह सब नहीं कर पाऊंगा। 
तू घबरा मत, मैं हूँ ना। अच्छा बता तेरा बैंक में खाता है क्या और हाँ आधार कार्ड भी? 

हाँ मास्टर जी है तो सही बैंक में खाता, पर खाता खाली है। आधार कार्ड भी है, पिछले साल ही बनाया था।
बढ़िया बात हुई ये तो धर्मपाल, तेरा आधा काम तो समझ हो गया। कल अपना बैंक का कागज़ और आधार कार्ड ले आईयो, बैंक चलेंगे।

अच्छा सुन, "मिड डे मील" का नाम तो सुना होगा ना तूने? 
हाँ-हाँ मास्टर जी, जो खाना मिलता है ना पाठशाला में बच्चों को खाने के लिए। रमुली बड़ी तारीफ करती है खाने की। इसी लालच में रोज़ पाठशाला जाती है। कभी छुट्टी नहीं लेती।

हाँ वही धर्मपाल, खाना बनाने के लिए एक औरत की जरूरत है। तुझे एतराज़ ना हो तो रमुली की बात करूँ क्या? तेरी थोड़ी मदद हो जायेगी पैसों की। बाकि देख ले तेरी मर्ज़ी है।

धर्मपाल मास्टर जी के पैरों में गिर पड़ा। आपकी बहुत मेहरबानी होगी मास्टर जी। 
चल ठीक है धर्मपाल, मैं पाठशाला में रमुली के लिए बात करता हूं और तू सुबह बैंक के सारे कागज़ात लेकर मेरे घर आ जाइयो। मैं चलता हूँ।

मास्टर जी तो जैसे देवता बन कर आये थे। थोड़े चक्कर काटने पड़े बैंक के, लेकिन किसान सरकारी योजना में मेरा नाम पंजीकृत हो गया और किसान क्रेडिट कार्ड भी बन गया। जिससे मैंने 1 लाख का कर्ज लिया फसल के लिए और सालाना 6 हज़ार भी मुझे मिलने लगा। रमुली की भी नौकरी पाठशाला में लग गयी।

मैंने और रमुली की माँ ने बहुत मेहनत की और मेहनत रंग लायी। बहुत अच्छी फसल हुई हमारी और मंडी में फसल के सही दाम भी मिल गए।

अपना सारा कर्ज़ मैंने तयशुदा सीमा में चुका दिया। आज मैं, रमुली और उसकी माँ सब तैयार होकर मास्टर जी के घर गए, मिठाई का डिब्बा लेकर। 
जैसे ही मैंने मास्टर जी के पाँव छुए, उनका धन्यवाद किया, उन्होंने मुझे गले से लगा लिया।

मैंने हाथ जोड़कर उन्हें कहा, अगर आप ना होते मास्टर जी तो हम तीनों कब की ख़ुदकुशी कर चुके होते। आपने हमें मरने से बचा लिया। आपका लाख-लाख धन्यवाद।

मास्टर जी बोले, अरे चुप............ मरे तेरे दुश्मन। वो ज़ोर से बोले.........जय जवान जय किसान। जब तक किसान है तब तक जीवन है। किसान ही तो है जिसके बदौलत हम सब जीवित है। जिस दिन किसान ने अन्न उगाना छोड़ दिया, उस दिन कोई जीवित नहीं बचेगा क्योंकि अन्न ही जीवन है।
मैं बस यही चाहता हूं धर्मपाल, जिस तरह मैंने तुझे सरकारी योजनाओं के बारे में अवगत करवाया, तेरी मदद की, वैसे ही तू अपने बाकि किसान भाइयों की मदद कर। सरकार ने जो किसानों के लिए योजनाएं बनायी हैं, उनके बारे में किसानों को बता और यथासंभव उनकी मदद कर। तभी मैं तेरा आभार स्वीकार करूँगा।

धर्मपाल जोश से बोला..... जी, मास्टर जी। आज मैं ये प्रण लेता हूँ, जैसे आपने मेरी मदद की, वैसे ही मैं सबकी मदद करूंगा।

सबके चेहरों पर मुस्कान थी, नए सपने, नई आशाएं थी।
सबने एक साथ ज़ोर से नारा लगाया.......जय जवान, जय किसान।

❤सोनिया जाधव
#लेखनी प्रतियोगिता

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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

04-Feb-2022 11:39 PM

बहुत खूबसूरत

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Rohan Nanda

04-Feb-2022 10:04 AM

Achchi kahani likhi h aapne...

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Gunjan Kamal

03-Feb-2022 12:36 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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